"इससे अच्छा केदारनाथ में दबकर मर जाते" - नेपाली मजदूरों की दुर्दशा
दीपक राई
एक अफवाह के बाद केदारनाथ से जान बचा कर वापस लौट रहे नेपाली मजदूरों की जान पर बन आई है। जंगलों और चोटियों से बच कर आए नेपाली जैसे ही सोनप्रयाग से आगे सीतापुर, रामपुर, बामसू और फाटा आ रहे हैं, तो हर जगह उनकी तलाशी ली जा रही है। गोद में छोटे-छोटे बच्चों को लिए चार दिन से भूखे प्यासे इन नेपाली मजदूरों को लाइन में खड़ा कर उनके कपड़े तक उतारे जा रहे हैं। ये वही नेपाली मजदूर हैं, जिनके सहारे गौरीकुंड से आगे केदारनाथ की यात्रा चलती थी। सोनप्रयाग से गुप्तकाशी के बीच यह वाकया हर जगह नजर आ रहा है। हालांकि इस इलाके की किसी भी पुलिस चौकी से इसकी पुष्टि नहीं हुई है। न ही पुलिस ने इस तरह के आदेश दिए हैं। कुछ स्थानीय लोग नेपालियों को देखते ही पुलिसिया अंदाज में यह सब कर रहे हैं। मजदूरों का कहना है कि हमारी महीने भर की कमाई छीनी जा रही है।
फाटा में हेलिपैड पर तैनात सब इंस्पेक्टर ने नेपाली मजदूरों से लूटपाट की घटना को खारिज किया है। उन्होंने बताया कि पुलिस के पास केदारनाथ में स्टेट बैक की करीब सवा करोड़ रुपये रकम है, जो केदारनाथ से यहां लाई गई है। लूट की किसी भी घटना की फाटा में कोई रिपोट नहीं है। केदारनाथ में 6 हजार से ज्यादा मजदूर थे जो गौरीकुण्ड से लेकर केदारनाथ के 14 किमी के रास्ते पर तीर्थयात्रियों को डोली पालकी और ढंडी-कंडी में रखकर केदारनाथ के दर्शन कराते हैं। पैदल मार्ग में यात्रियों को पीठ-कंधे और घोड़े खच्चर पर ले जाने वाले इन मजदूरों में नेपाली मूल के सबसे ज्यादा मजदूर हैं। इसके अलावा कश्मीरी और लोकल मजदूर भी बड़ी तादाद में हैं। इनमें से भी कई सौ इस हादसे में जान गंवा चुके हैं। बचे हुए मजदूर जंगल के रास्ते सोनप्रयाग आने लगे। अब तक 2 से 3 हजार मजदूर इन रास्तों से लौट आए हैं। इस इलाके में लूटपाट और चोरी की अफवाह के चलते नेपाली मजदूरों की पिटाई का सिलसिला जारी है। केदारनाथ में पुल के पास एक छोटे से ढाबे से आजीविका चलाने वाले नन्द बहादुर कहते है कि तीन दिन जंगलों से बचते हुए जब सोनप्रयाग पहुंचे तो यहां राहत देने के बजाय गाली-गलौज और मारपीट ने और डरा दिया। इससे अच्छा केदारनाथ में दब जाते तो कम से कम जलील होने से तो बच जाते।
केदारनाथ से जान बचाकर अपने बच्चों के साथ लौट रहे नेपाली परिवारों को भी इसी तरह जलील किया जा रहा है। 4 महीने की बेटी गोद में उठाए और 3 साल के लड़के के साथ वापस आई तारा कहती है इतना दुख जंगल में 3 दिन तक भूखे प्यासे बच्चों को ले जाते हुए नहीं हुआ जितना सीतापुर से लेकर गुप्तकाशी में जगह-जगह तलाशी के नाम पर हो रहे व्यवहार से हुआ। गलत लोगो का कोई धर्म और मजहब नही होता है कोई देश नही होता है ऐसे लोग कही पर भी हो सकते है इसलिया हमे किसी एक कौम धर्म और देश के लोगो को बदनाम नही करना चाहिये। जरुरी नही की वहा पर लुटपाट का काम नेपाली मजदूरो ओर नेपाली मूल के लोगो ने किया हो वही के स्थानीय लोग भी यह कार्य कर सकते हैं केवल नेपाली लोगो के साथ ऐसा भेदभाव अच्छा नही है इसमे केन्द्र सरकार ओर राज्य सरकार दोनो को मिलकर ऐसे कार्य होने से रोकना चाहिए जिससे आने वाले वक़्त में गौरवशाली समाज के ऊपर कीचड़ ना उछाला जाएँ ।
नेपाली लोग ईमानदार, कर्मठ और मेहनती होते है, उनके उपर इस तरह का दोषारोपण करना सरासर गलत है। आज इन्ही की बदोलत दुर्गम रास्तो मे तीर्थ यात्रा संभव होती है। आज से 50 साल पहले भी तीर्थयात्री जब सामान इनकी पीठ पर लाद देते थे तो यात्रा के प्रति निश्चिंत हो जाते थे और गंतब्य पर सारा सामान सही सलामत पहुंच जाता था। हो सकता कुछ जंगलो मे रहने वाले लड़के या बॉर्डर पार के कुछ बदमासो ने इस तरह की घटनाओ को अंजाम दिया हो। ध्यान देने वाली बात तो यह है कि केवल शक्ल सूरत मिलने के कारण इनका नाम ले लिया गया हो। ये लोग भी अपनी जान बचा कर किसी तरह से वापस नीचे आये है, इनके साथ इस तरह का गलत व्यवहार उचित नही है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से लेकर सन 62,65,71 और कारगिल युद्ध मे गोरखा /नेपालियो ने बलिदान दिया है लेकिन भारत सरकार ने नेपालियो के बलिदान को कभी भी सम्मान नही दिया है. भारत सीमा पर एसएसबी द्वारा नेपालियो को लुटा जाता है बुरा ब्यवहार किया जाता है पर भारत सरकार मौन रहती है. उत्तराखंड मे नेपालियो पर जुल्म एक जघन्य अपराध है इसकी जितनी भी भ्रत्सना की जाये कम है. भारत सरकार को ऐसे उदंड ब्यवहार करने वाले तत्व को तुरंत दंडित करना चाहिये।
नेपाली नागरिको के साथ हो रहा है दुर्व्यवहार
गौरीकुंड के पास नेपाल के रोल्पा निवासी बीर बहादुर(20) को भीड़ पीट पीटकर मार डालती लेकिन पुलिस ने हस्तक्षेप किया और उसे चौकी ले आयी। बीर बहादुर ने कहा, ‘मैं अपनी बहन और उसके पति के साथ जंगल चट्टी से नीचे आ रहा था। मेरे बैग में 15 हजार रपये थे। ये वह पैसा था जो मैंने कमाए थे।’ उसने कहा, ‘मैं नेपाल में रहता हूं. मेरी बहन, उसका पति और मैं यहां प्रत्येक वर्ष काम करने के लिए आते हैं। यह वह पैसा था जो मैंने लोगों को ढोकर कमाए थे।’ उसने कहा, ह्यजब हम वापस आ रहे थे तो भीड़ ने मुझे घेर लिया और वे मेरे बैग की तलाशी लेना चाहते थे। जैसे ही उन लोगों ने मेरे बैग में पैसे देखे वे मुझे चोर बताने लगे और मेरी बेरहमी से पिटायी करने लगे.’नेपाली नागरिक ‘कांडी’ के रूप में कार्य करते हैं. ये वे लोग होते हैं जो वृद्धों को अपनी पीठ पर बेंत से बनी टोकरी में गौरीकुंड से केदारनाथ पहुंचाते हैं.
नेपाल के 700 लोग अब तक लापता
उत्तराखंड में आये विकराल प्राकृतिक आपदा के बाद अब केदारनाथ के दर्शन कराने के लिए यात्रियों को पिट्ठू और डोली में ढोने वाले नेपालियों को प्रशासन और लोगों ने एकदम भुला दिया गया है, इसके उल्टे उन पर लूटपाट और दुष्कर्म के आरोप लगाए जा रहे हैं। उत्तराखंड की राजनितिक पार्टी गोरखा नेशनल फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष सूर्य विक्रम शाही ने ऐसे आरोपों को मनगढंत बताते हुए इसे नेपाली समाज के खिलाफ साजिश बताया। उन्होंने मुख्यमंत्री से इन घटनाओं की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की है, ताकि नेपालियों को अपमानजनक स्थिति का सामना न करना पड़े। शाही ने एक स्थानीय दैनिक से हुए बातचीत में बताया कि नेपाल के करीब 700 लोग इस दैवीय आपदा में लापता हुए हैं। इनमें से तीन-चार सौ लोग लो केवल डोली उठाने वाले हैं, जिनके बारे में अभी तक कुछ भी पता नहीं लग पाया है और साथ ही प्रशासन भी इनका पता लगाने में अभी तक गंभीर दिखाई नहीं दी है ।सबसे अधिक आपदाग्रस्त इलाको के खासतौर गौरीकुंड में होटल चलाने और डोली का काम करने वाला नेपाली नागरिक राजू इस समय हिमालयन अस्पताल जौलीग्रांट में भर्त्ती हैं। उसे खुद रेस्क्यू कर फाटा लाया गया था, जहां से उसे अस्पताल पहुंचाया गया। राजू ने बताया था कि उसके साथ के ही 16 लोग लापता हैं। इसके अलावा नेपाल सरकार के अधिकारी जो राहत शिविरों में कार्य कर रहे है उन्होंने भी अपने नागरिको के ऊपर लग रहे संगीन आरोपों पर कड़ी प्रतिक्रया देते हुए मुख्यमंत्री से विरोध भी जताया है। उन्होंने मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से लूटपाट और दुष्कर्म की घटनाओं की निष्पक्ष जांच की मांग उठाई है।