|

उत्तराखंड में अपंग है लोकायुक्त संगठन

देहरादून.अन्ना हजारे की जन लोकपाल की मुहिम के समर्थन में भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर खुलकर साथ दे रही है, लेकिन भाजपा शासित उत्तराखंड में लोकायुक्त संस्था अपंग स्थिति में है। मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में लोकायुक्त के दायरे में मुख्यमंत्री भी हैं, वहीं उत्तराखंड में मुख्यमंत्री लोकायुक्त के क्षेत्राधिकार से बाहर हैं। संस्था ने अपने आठ साल की अवधि में 232 अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिशें तो कीं, लेकिन एक पर भी अमल नहीं हुआ। बीते दो सालों में घोटालों से संबंधित 22 महत्वपूर्ण सिफारिशें ठंडे बस्ते में हैं। यही नहीं, वर्ष 2006 के बाद तो सिफारिशों पर एक्शन रिपोर्ट विधानसभा में पेश नहीं की गई। बद से बदतर हो रहे हालात के चलते ही लोकायुक्त का यह दर्द बीते दिनों राज्यपाल से भेंट के दौरान भी बरबस झलक पड़ा। तंत्र के खिलाफ शिकायतों के ढेर पर बैठा यह संगठन जनता की उम्मीदों के आगे बेबस है।
यह बेबसी किन्हीं और वजहों से नहीं, बल्कि भ्रष्टाचारमुक्त पारदर्शी प्रशासन देने का दावा करने वाली राजनीतिक पार्टियों और उनकी सरकारों की देन है। पार्टियां खुद भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी मुहिम को भोंथरा बनाने से गुरेज नहीं कर रही हैं। उत्तराखंड में पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में बनाया गया लोकायुक्त एक्ट खुद इसकी मिसाल है। बढ़ते भ्रष्टाचार को थामने और सरकारी तंत्र में पारदर्शिता के लिए बनाई गई यह संस्था सियासत के दोहरे चरित्र का शिकार हो रही है। इस मामले में प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा की हालत तो 'दूसरों को नसीहत, खुद फजीहत' की है।

लोकायुक्त के गठन की आठ साल की अवधि में तकरीबन सौ से ज्यादा महत्वपूर्ण सिफारिशें ठंडे बस्ते में हैं। वर्ष 2006 के बाद इन सिफारिशों पर एक्शन रिपोर्ट विधानसभा में पेश नहीं की गई। सिफारिशों पर कार्रवाई की सूरत में 232 अफसरों पर गाज गिरती। बीते दो सालों में 22 सिफारिशें अमल को तरस गई। नतीजन, वरुणावत ट्रीटमेंट में करोड़ों के घोटाले, सिडकुल हरिद्वार, पंतनगर फेज-दो और आइटी पार्क देहरादून में सरकार को करोड़ों का चूना लग चुका है। वरुणावत में नौ करोड़ के घोटाले में दोषियों से अब तक वसूली नहीं हुई। हरिद्वार में तो सिडकुल की ओर से बाकायदा एफआइआर दर्ज कराई गई और लोकायुक्त की कड़ी संस्तुतियों के बावजूद दोषी बेखौफ हैं। आइटी पार्क देहरादून में पीपीपी मोड में बना साइबर टावर खंडहर बन चुका है। 50 फीसदी राशि के तौर पर सरकार की करोड़ों की राशि इसमें खर्च हुई, लेकिन निजी कंपनी के खिलाफ कार्रवाई को लेकर हाथ बंधे हैं। पंतनगर फेज-दो में तो कार्यदायी एजेंसी सड़क बनाने के लिए जबरदस्ती भरान दिखाकर मिट्टी को हजम कर गई।

सूबे के लोकायुक्त एक्ट में खामियां

1-लोकायुक्त एक्ट के दायरे में सीएम शामिल नहीं, लिहाजा कर्नाटक की तर्ज पर उत्तराखंड में नहीं लिया जा सकता एक्शन

2-लोकायुक्त को जरूरत के मुताबिक छापा मारने और सर्च एंड सील का अधिकार नहीं

3-सरकारी कार्मिक अपने ही विभाग के अन्य कार्मिकों के खिलाफ दर्ज नहीं करा सकता शिकायत

4-अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति को नौकरशाह नहीं देते तवज्जो

5-सिफारिशों पर अमल और फिर उसके बारे में एक्शन रिपोर्ट विधानसभा पटल पर रखना बाध्यकारी नहीं।

(साभार :जागरण)

Posted by Unknown on 23:25. Filed under , , . You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0. Feel free to leave a response

0 comments for "उत्तराखंड में अपंग है लोकायुक्त संगठन"

Leave a reply