150 साल का हुआ टेलीफोन
टेलीफोन के आविष्कार की बात हो तो ग्राहम बेल का नाम ही याद आता है। पर ग्राहम बेल के आविष्कार से कई साल पहले ही जर्मनी में टेलीफोन की घंटी बज गई थी। फिलिप राईस ने 1861 में जर्मनी में फोन का पहला मॉडल तैयार किया। ग्राहम बेल ने इसके कई साल बाद 1876 में अमेरिका में फोन का पेटंट कराया। अक्टूबर में जब फिलिप राईस ने टेलीफोन का आविष्कार किया तो उनके पहले शब्द थे, "घोड़े खीरे का सलाद नहीं खाते।" आज हम घंटों फोन पर बातें करते हैं और इनमें अधिकतर बातें संजीदगी से परे होती हैं. 19वीं सदी के अंत में दो लोगों को संवाद के लिए चिट्ठियां लिखनी पड़ती थी. अगर बेहद जरूरी बात बतानी हो तो तार भेजना पड़ता था. धीरे धीरे टेलीफोन ने इनकी जगह ले ली. 1881 में पहली टेलीफोन बुक छपी जिसमें 187 लोगों के नाम थे. घर की दीवारों पर लगा फोन रईस लोगों की शान बढाने लगा. भारत में फोन 80 के दशक में आए. 1982 में पहली बार कलकत्ता, मद्रास और बंबई में टेलीफोन एक्सचेंज खोले गए. 20वीं सदी की शुरुआत में जर्मनी में फोन बहुत तेजी से फैले. 1910 में जर्मनी में करीब साढ़े नौ लाख लोगों के पास फोन था. 1930 तक यह संख्या 32 लाख हो गई. बच्चे भी सीखने लगे कि लोगों को बिना देखे भी उन से बात की जा सकती है. उस जमाने में लोग नंबर खुद नहीं मिला सकते थे. यह काम टेलीफोन ऑपरेटर का हुआ करता था. इस काम के लिए लड़कियों को रखा जाता था क्योंकि लड़कों के मुकाबले उनकी आवाज ऊंची होती है और उस समय की तकनीक के लिए यह ठीक था.
जो लोग घर में फोन नहीं लगवा सकते, वे बाहर जा कर टेलीफोन बूथ से फोन कर सकते थे। हालांकि फोन बूथ आज भी कई शहरों में दिखते हैं, लेकिन इनका चलन खत्म सा हो रहा है। 1904 में पहली बार बर्लिन में टेलीफोन बूथ लगाया गया। एक शताब्दी तक जर्मनी के डाक घर के बाहर पीले रंग के टेलीफोन बूथ देखे जा सकते थे. लेकिन इनका इस्तेमाल तभी किया जा सकता था बशर्ते जेब में सिक्के हों. 1960 के दशक में पश्चिम जर्मनी के लगभग हर घर में फोन हुआ करता था. डाकघर से ऐसे हल्के रंग के फोन मिला करते थे, जिसे लोग घर के गलियारे में रखना पसंद करते थे. फोन की लच्छेदार तार में लोग उलझ के रह जाते थे. इसीलिए घरों में टेलीफोन डेस्क का चलन शुरू हो गया. लोग मेज पर फोन रख आराम से कुर्सी में बैठ बात करना पसंद करते थे. 70 के दशक में फोन के नए मॉडल आने शुरू हुए. लोग हरे और नारंगी रंग के फोन लगवा सकते थे. फोन घर के गलियारे से बैठक तक पहुंच गए. लेकिन हर घर में एक ही फोन हुआ करता था. इसके चलते परिवार में आपस में बहस भी लगी रहती थी कि कौन कितने देर तक फोन करता है.
1983 में जर्मनी में पहला वायरलेस फोन आया। तार का झंझट खत्म हो गया। घर की बैठक हो या रसोई, फोन हर जगह साथ रहता था। लेकिन 80 के दशक का सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार रहा मोबाइल फोन. आज इनके बिना हमारा जीवन अधूरा है. भारत में मोबाइल फोन की शुरुआत 1995 में हुई. 2010 के आंकड़ों के अनुसार जर्मनी में करीब 11 करोड़ मोबाइल कनेक्शन हैं. जर्मनी की आबादी करीब आठ करोड़ है. भारत में भी लगभग हर किसी के पास मोबाइल फोन होता है और कुछ लोगों के पास तो तीन से चार मोबाइल फोन भी होते हैं. राजधानी दिल्ली में हर एक हजार लोगों पर करीब ढाई हजार मोबाइल फोन हैं. 150 साल पहले बने फोन ने आज एक अलग ही शक्ल ले ली है. स्मार्ट फोन्स के आ जाने से लोग हर वक्त इंटरनेट के जरिए पूरी दुनिया से जुड़े हैं. अब तो फोन पर केवल आवाज ही सुनाई नहीं देती, बल्कि फोन करने वाले का वीडियो भी दिखता है.
